काव्या की उम्र अभी 10 वर्ष है और वह एक अनाथ आश्रम में रहती है। क्योंकि जब वह 6 साल की थी तो उसके पिताजी का एक्सीडेंट में ज़्यादा चोटिल होने से देहांत हो गया था। काव्या की मम्मी उसको लेकर उसके नाना- नानी के घर पर रहने लगी और साथ ही में उसकी मम्मी काव्या की पढ़ाई-लिखाई हेतु एक अच्छे अनाथ आश्रम की तलाश में जुटी हुई थीं तथा अच्छा आश्रम मिलते ही काव्या का दाखिला आश्रम में करा दिया गया जहां उसकी पढ़ाई-लिखाई, रहन-सहन की सभी सुविधाएं पूरी तरह से निशुल्क थीं। आश्रम में काव्या की भांति अन्य बच्चे भी थे जो अपनी किसी ना किसी मजबूरी या यूं कहें कि अपनी अच्छी किस्मत की वजह से यहां इतने अच्छे स्थान पर थे। काव्या को आश्रम में आए हुए तकरीबन साढ़े तीन वर्ष हो चुके थे। आश्रम के सभी बच्चे सीबीएसई अपरुव्ड इंग्लिश मीडियम स्कूल में पढ़ने के लिए भेजे जाते थे। काव्या चौथी कक्षा में पढ़ रही थी जब उसने कक्षा में शनिवार को बाल सभा के दौरान अंताक्षरी में हिस्सा लिया था। सौभाग्य से उस दिन उसकी कक्षाचार्या की अनुपस्थिति में उनकी कक्षा में संगीत वाली मैडम का अरेंजमेंट पीरियड लगा। उस अंताक्षरी के दौरान संगीत अध्यापिका ने काव्या के कोमल कंठ की सराहना की और यूं माने कि उन्होंने उस दिन कोयले की खान में से हीरे को खोज लिया था। अब संगीत अध्यापिका काव्या को निरंतर किसी न किसी उपलक्ष्य में उसके गाने का हुनर प्रस्तुत करने के लिए उसका उत्साह वर्धन करने लगीं, बस फिर क्या था फिर तो प्रार्थना सभा हो या कोई त्यौहार, संगीत अध्यापिका काव्या को ही भक्ति- गीत एवं भजन प्रस्तुति के लिए मंच पर बुला लेतीं। हालांकि उसके लिए वे कार्यक्रम के एक सप्ताह पूर्व ही उसकी अच्छी तैयारी करवाती थीं। जैसे-जैसे समय बीतता गया काव्या का मन संगीत की ओर अधिक लगने लगा और तकरीबन हर बच्चे की भांति उससे भी जब कोई यह पूछता कि बड़े होकर क्या बनना चाहती हो तो उसका जवाब होता "गायिका" और हो भी क्यों ना अब काव्या अपनी संगीत शिक्षिका की बदौलत अपना हुनर पहचान चुकी थी। अब काव्या का एक ही सपना था की वह गायकी की दिशा में अपनी पहचान बनाए, लेकिन उसके सामने बहुत बड़ी चुनौती थी एक चुनौती तो यह की आश्रम में रहते हुए उसे वहां के सभी नियम जो कि वहां रहने वाले सभी बच्चों के लिए समान थे उनका पालन तो करना ही था और दूसरी बात, यदि हमारे अंदर कोई गुण होता है तो वह गुण हमारी पहचान तभी बनता है जब हम अपनी खासियत पर निरंतर लगन के साथ मेहनत करें और अपने गुण को चमका सकें। यह सब तभी संभव हो पाता है जब हम संबंधित गुणों की पूरी जानकारी रखते हैं। अगर बात करें काव्या की तो उसको यहां पर ज़रूरत थी संगीत कक्षाओं की क्योंकि विद्यालय में तो मात्र हफ्ते में एक ही पीरियड सिर्फ तीस मिनट का हुआ करता था और उसमें अध्यापिका सभी बच्चों को एक समान ज्ञान दे पाती थीं। किंतु काव्या की संगीत में रूचि होने की वजह से उसको अत्यधिक प्राथमिकता की आवश्यकता थी। और उसके लिए अपनी मर्ज़ी से गाने सुनना या गायकों के विषय में जानना इतना आसान नहीं था। जब काव्या आश्रम की गाड़ी से सभी बच्चों के साथ स्कूल जाया करती थी तभी चालक साहब द्वारा गाड़ी में बजाए हुए गानों को वह सुन पाती थी और उन्हें दोहराने का प्रयास करती थी। सीखने के नाम पर सिर्फ यही मार्ग काव्या के लिए अभी तक उपलब्ध हो सका था। और वाद्य यंत्रों के अभाव में संगीत का या सुरों का रियाज करना काव्या के लिए संभव नहीं हो पा रहा था। आश्रम का वार्षिकोत्सव काफी नज़दीक था, मैनेजमेंट द्वारा छात्रों से चर्चा की गई कि कार्यक्रम में कौन छात्र किस प्रकार भाग ले सकेगा? मात्र कुछ ही बच्चे कार्यक्रम में अपनी प्रतिभा दिखाना चाहते थे, कोई पशु-पक्षियों की आवाज़ें निकालने में माहिर था, कोई नृत्य में तो कोई कलाबाजी खाने में, उनमें से एक थी काव्या जिसने एक भक्ति-गीत प्रस्तुत करने का निर्णय लिया। बिना किसी तैयारी के वार्षिकोत्सव में जब काव्या ने उमंग भरा भक्ति-गीत प्रस्तुत किया तो श्रोतागणों की तालियों से पूरा पंडाल गूंज उठा और सैंकड़ों की संख्या में आए हुए श्रद्धालुओं और भक्तजनों में से एक समाजसेवी व्यक्ति आगे आए और उन्होंने इस बच्ची को वर्ष भर के लिए स्पॉन्सर करने की घोषणा की, जिसका मतलब था की बच्ची पर होने वाला कुल वार्षिक खर्च उन सज्जन द्वारा वहन किया जाएगा। जिसमें रहन-सहन, विद्याध्ययन, स्वास्थ्य देखभाल खर्च आदि शामिल होते थे। काव्या को भरी सभा में यह सुनकर बहुत खुशी हुई और अब उसने हिम्मत जुटाकर मैनेजमेंट को बताया कि वह एक गायिका बनना चाहती है। काव्या ने आश्रम के मैनेजमेंट से गुजारिश की की एक अच्छी गायिका बनने के लिए उसे संगीत कक्षाओं की ज़रूरत है। आश्रम का मैनेजमेंट और आश्रम का एक ही उद्देश्य था की बच्चे अपने पैरों पर खड़े हों और अपनी ज़िंदगी में सफल व्यक्ति बने। इसीलिए उन्होंने एक अच्छी संगीत शिक्षिका की खोज शुरू कर दी। लेकिन अगली चुनौती ज़्यादा बड़ी थी जो यह तय करना थी की कक्षा का समय क्या रखा जाए? क्योंकि आश्रम में होने वाली अन्य गतिविधियां जिनमें काव्या को प्राथमिक रूप से उपस्थित रहना ही रहना है, सभी बच्चों के लिए कुछ गतिविधियां अनिवार्य थी। अब काव्या ने यह तय किया की उसका जो आधा घंटा मनोरंजन का समय है, उस समय को वह अपनी कक्षा में लगाएगी तथा आधा घंटा जो श्रमदान का है उस समय को भी वह कक्षा में लगाएगी। इस प्रकार काव्या ने अपने लिए एक घंटे का समय तय कर लिया था, क्योंकि श्रमदान तो वह सुबह बाकी सब से आधा घंटा पहले उठकर भी कर सकती थी। काव्या अपने विद्यालय में समय-समय पर आयोजित कार्यक्रमों में भजन एवं भक्ति-गीत गाने लगी और साथ ही आश्रम में उसकी संगीत कक्षाएं चल रही थी। इसी कारण से काव्या को उसके कॉन्फिडेंस लेवल में भी वृद्धि महसूस होने लगी थी। विद्यालय की संगीत शिक्षिका को ही आश्रम में काव्या को संगीत शिक्षा देने के लिए नियुक्त किया गया था। एक बार काव्या के विद्यालय में संगीत प्रतियोगिता आयोजित हुई जिसमें काव्या ने भाग लिया और प्रथम स्थान प्राप्त किया। स्कूली प्रतियोगिताओं को जीतना भले ही काव्या के लिए नई और बड़ी बात थी लेकिन भविष्य में सफलता की दृष्टि से देखा जाए तो यह काव्या के सफर की सिर्फ एक छोटी सी शुरुआत थी। अब इसी तरह से कई संगीत प्रतियोगिताओं में काव्या ने हिस्सा लिया और हमेशा प्रथम स्थान हासिल किया। विद्यालय में किसी त्योहार के उपलक्ष्य में आयोजित कार्यक्रमों में अब काव्या को गाने के लिए पहले से तैयारी की आवश्यकता नहीं होती थी। अब वह ऑन द स्पॉट गा सकती थी। फिर एक बार ऐसा दिन आया जब उसके विद्यालय द्वारा एक बड़ी गायन प्रतियोगिता होने की घोषणा हुई। यह एक राज्य लेवल की प्रतियोगिता थी, जिसमें प्रांतीय स्तर के बहुत से स्कूलों ने हिस्सा लिया तथा हर स्कूल से उनके बेस्ट गायक छात्र छंटकर आए थे। और यह प्रतियोगिता कईं चरणों में होनी थी। विद्यालय द्वारा इस प्रतियोगिता में हिस्सा लेने के लिए इच्छुक उम्मीदवारों की छंटनी हो चुकी थी जिसमें काव्या का नाम भी सम्मिलित था। लेकिन इस दौरान काव्या के गले में दर्द होने लगा, डॉक्टरी जांच के बाद पता लगा कि उसके गले में टोंसिल्स हैं। इस मर्ज के कारण काव्या की आवाज़ काफी धीमी हो चली थी और वह सुर-ताल लगाने में असमर्थ थी। फिर भी काव्या ने दवाओं का सहारा लेकर और अतिरिक्त प्रयास करके अपने गले के दर्द को शांत रखने की भरसक कोशिश की तथा प्रतियोगिता में सम्मिलित हो गई, क्योंकि काव्या इतनी बड़ी प्रतियोगिता से खुद को अलग रखने के बारे में सोच भी नहीं सकती थी। प्रतियोगिता चरणबद्ध तरीके से आगे बढ़ रही थी, इस प्रतियोगिता में काव्या ने तीसरा स्थान पाया, तीसरा स्थान पाना काव्या के लिए दुःखद तो था लेकिन इसका असर प्रतियोगिता के अगले चरण में ना के बराबर पड़ना था। तीन महीने बाद राज्य स्तर के पहले तीन विजेताओं को राष्ट्रीय स्तर की प्रतियोगिता के लिए जाना था। अब तक काव्या का गला ठीक हो चुका था और वह काफी कॉन्फिडेंट थी। इसलिए इस बार काव्या ने कड़ी मेहनत की थी तथा उसकी परफॉर्मेंस भी जोरदार थी। अपनी निरंतर मेहनत और पहले से बेहतर करने का प्रयास के कारण काव्या राष्ट्रीय स्तर की इस प्रतियोगिता में प्रथम स्थान के साथ विजयी हो सकी। इस बार काव्या के लिए गर्वित होने का अवसर था क्योंकि इस बार उसने कुछ बड़ा हासिल किया था। काव्या की संगीत कक्षा निरंतर चलती रही और वह निरंतर खुद को और बेहतर करती गई। गायन के साथ-साथ वह अपनी पढ़ाई भी कंटिन्यू कर रही थी। काव्या को जहां मौका मिलता था वहां वह भजन, भक्ति-गीत एवं गानों के सुर से सबका मन मोह लेती थी। काव्या का मनोबल लगातार बढ़ता चला जा रहा था। दो साल बाद काव्या ने इंडियन आईडल जूनियर में अपना ऑडिशन दिया और वह इंडियन आइडल के प्रतिस्पर्धात्मक ऑडिशन में सिलेक्ट हो गई। जो कि उसके सुनहरे जीवन और भविष्य में सफलता पाने और उसकी पहचान बनाने की पहली सीढ़ी थी। अभी तक काव्या का सपना इंडियन आइडल के मंच पर आकर अपनी मेहनत और हुनर दिखाना था जिसमें वह सभी बाधाओं के दौरान मजबूत बनी रही और सभी बाधाओं को पार करते हुए सफल रही।
शिक्षा/संदेश:- हमें निरंतर अपने कदम लक्ष्य की ओर आगे बढ़ाते रहने चाहिए, आगे का रास्ता दिखता जाएगा।